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समाज और मैं

  • 6 Jan, 2023
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समाज और मैं में न प्रेम के बोल हैं न ही वियोग से आंसू इस में समाज को दर्पण दिखाने वाली कविताएं हैं। इस क़िताब में कविता है गांव की शहर की , भारत की ,दर्द है किसानों का , भावना है लाचार की , गरीब कि व्यथा है।

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कवि कम क्रांतिकारी दक्षल कुमार व्यास सर्वप्रथम राष्ट्र की भावना लिए कर्म पथ पर अग्रसर है और इन की किताब समाज और मैं भी प्रकाशित हुई है।
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  • क्यों क्यों

    क्यों

    .

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  • बदलाव बदलाव

    बदलाव

    .उड़ता सा जा रहा हूं इस बढ़ती दुनियां में गुम ता सा जा रहा हूं इस भटकती दुनियां में नही मिल रही मंजिल इस स्वार्थी दुनियां में स्वाभिमान की लड़ाई में दुनिया की ठोकरें खा रहा हू अहिंसा के पथ पर चोट खां रहा हू हिंसा की राह पर बदनामी की भेट मिल रहीं खुद बदल कर दुनियां बदल ने चला खो बैठा हु ईमानदारी ,स्वाभिमान , न्याय, धर्म जी रहा हू भ्रष्टाचार , बेइमान ,अन्याय, अधर्म, की जिंदगी मैं मैं। :-दक्षल कुमार व्यास

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  • गांधी गांधी

    गांधी

    नहीं चल रही गांधीगिरी आज क्यों

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  • मैं भारत हूं मैं भारत हूं

    मैं भारत हूं

    मैं भारत हूं मैं भारत हूं

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  • कंक्रीट के महल कंक्रीट के महल

    कंक्रीट के महल

    बरसो से चल रहा कार्य आज तेज हो गया । गांव जाते समय देखा ट्रेन में से क्या था क्या हो गया । नदी , नाले ,तालाब , जंगल , गांव ।

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