Description
समाज और मैं में न प्रेम के बोल हैं न ही वियोग से आंसू इस में समाज को दर्पण दिखाने वाली कविताएं हैं। इस क़िताब में कविता है गांव की शहर की , भारत की ,दर्द है किसानों का , भावना है लाचार की , गरीब कि व्यथा है।
समाज और मैं में न प्रेम के बोल हैं न ही वियोग से आंसू इस में समाज को दर्पण दिखाने वाली कविताएं हैं। इस क़िताब में कविता है गांव की शहर की , भारत की ,दर्द है किसानों का , भावना है लाचार की , गरीब कि व्यथा है।
Write a comment ...
Write a comment ...