• Dakshal Kumar Vyas
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कंक्रीट के महल

  • 6 Jan, 2023

बरसो से चल रहा कार्य आज तेज हो गया । गांव जाते समय देखा ट्रेन में से क्या था क्या हो गया । नदी , नाले ,तालाब , जंगल , गांव ।

जहा 60 इंच तक बरसात में नदी नाले नही भरा करते थे और आज 20 इंच बारिश पर तो मानो बाड़ से हालात हो जाते है । और बाद में देखो तो वो सारा पानी बह कर निकल जाता है । और फिर सुखा। कंचन नागरी नाम हैं मेरे गांव का। वह दिन गांव के वह राते बीना पंखे के दिन निकल जाते थे और राते आसमा के नीचे क्या दिन थे। आज तो एयर कंडीशनर के बिना देखो दो मिनिट भी ट्रेन में बैठे बैठे ये कुछ ख्याल आए।

अब गांव से दस किलोमीटर की दूरी और थी की ट्रेन को लाल झंडी मिली और क्या था ट्रेन रुक गई। फिर पता चला की जंगल से कुछ हाथी पटरी पर आ गए।

इस वजह से ट्रेन को राका गया।

जब मै छोटा था तब यहां जंगल में कई बार आया करता था। हर पखवाड़े में एक बार तो में और मेरे मित्र और मेरे भाई। तब ये बहुत बड़ा जगल था। और बड़े बड़े वृक्ष वो दिन मज़ा आता था।

और वो आम के पेड़ से केरिया तोड़ कर खाना। एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर जाना। आ हा । आज तो उस जंगल का दस प्रतिशत भी नहीं रह गया सभी और फेक्ट्रिया लग गई। जब में करीब 18 वर्ष का बालक था। तब मेने इस जंगल में फैक्टरी देखी जो की बड़ी फर्नीचर की थी। तब कई लोगो को काम मिला था। रोज़गार के लिए इंसान इंसान को बेच दे।

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कवि कम क्रांतिकारी दक्षल कुमार व्यास सर्वप्रथम राष्ट्र की भावना लिए कर्म पथ पर अग्रसर है और इन की किताब समाज और मैं भी प्रकाशित हुई है।
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  • क्यों क्यों

    क्यों

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  • बदलाव बदलाव

    बदलाव

    .उड़ता सा जा रहा हूं इस बढ़ती दुनियां में गुम ता सा जा रहा हूं इस भटकती दुनियां में नही मिल रही मंजिल इस स्वार्थी दुनियां में स्वाभिमान की लड़ाई में दुनिया की ठोकरें खा रहा हू अहिंसा के पथ पर चोट खां रहा हू हिंसा की राह पर बदनामी की भेट मिल रहीं खुद बदल कर दुनियां बदल ने चला खो बैठा हु ईमानदारी ,स्वाभिमान , न्याय, धर्म जी रहा हू भ्रष्टाचार , बेइमान ,अन्याय, अधर्म, की जिंदगी मैं मैं। :-दक्षल कुमार व्यास

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  • गांधी गांधी

    गांधी

    नहीं चल रही गांधीगिरी आज क्यों

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  • मैं भारत हूं मैं भारत हूं

    मैं भारत हूं

    मैं भारत हूं मैं भारत हूं

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  • समाज और मैं समाज और मैं

    समाज और मैं

    समाज और मैं में न प्रेम के बोल हैं न ही वियोग से आंसू इस में समाज को दर्पण दिखाने वाली कविताएं हैं। इस क़िताब में कविता है गांव की शहर की , भारत की ,दर्द है किसानों का , भावना है लाचार की , गरीब कि व्यथा है।.

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