बरसो से चल रहा कार्य आज तेज हो गया । गांव जाते समय देखा ट्रेन में से क्या था क्या हो गया । नदी , नाले ,तालाब , जंगल , गांव ।
जहा 60 इंच तक बरसात में नदी नाले नही भरा करते थे और आज 20 इंच बारिश पर तो मानो बाड़ से हालात हो जाते है । और बाद में देखो तो वो सारा पानी बह कर निकल जाता है । और फिर सुखा। कंचन नागरी नाम हैं मेरे गांव का। वह दिन गांव के वह राते बीना पंखे के दिन निकल जाते थे और राते आसमा के नीचे क्या दिन थे। आज तो एयर कंडीशनर के बिना देखो दो मिनिट भी ट्रेन में बैठे बैठे ये कुछ ख्याल आए।
अब गांव से दस किलोमीटर की दूरी और थी की ट्रेन को लाल झंडी मिली और क्या था ट्रेन रुक गई। फिर पता चला की जंगल से कुछ हाथी पटरी पर आ गए।
इस वजह से ट्रेन को राका गया।
जब मै छोटा था तब यहां जंगल में कई बार आया करता था। हर पखवाड़े में एक बार तो में और मेरे मित्र और मेरे भाई। तब ये बहुत बड़ा जगल था। और बड़े बड़े वृक्ष वो दिन मज़ा आता था।
और वो आम के पेड़ से केरिया तोड़ कर खाना। एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर जाना। आ हा । आज तो उस जंगल का दस प्रतिशत भी नहीं रह गया सभी और फेक्ट्रिया लग गई। जब में करीब 18 वर्ष का बालक था। तब मेने इस जंगल में फैक्टरी देखी जो की बड़ी फर्नीचर की थी। तब कई लोगो को काम मिला था। रोज़गार के लिए इंसान इंसान को बेच दे।
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