Kyo
मंजिलों के दो राह पर खड़ा हूं आज क्यों
सफ़र चल रहा है मैं रुका हूं आज क्यों
जेब भरी नहीं है नज़र अंदाज कर रहे लोग आज क्यों
रिश्तों में नोटो कि गांठ लग रही आज क्यों
कुछ करना चाहता हूं कुछ बनने की ख्वाइश आज क्यों
जीवन नहीं जी रहा हूं घृणा के मैदान में खड़ा हूं आज क्यों
चलाना चाहता हूं चप्पल टूट गए आज क्यों
थोड़ा उठा हू खड़ा हूं दुनिया आशाओं से दबा रही आज क्यों
अभी थोड़ा और जीना चाहता हूं जिम्मेदारियां आज क्यों
दक्षल कुमार व्यास
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