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बदलाव

उड़ता सा जा रहा हूं

इस बढ़ती दुनियां में

गुम ता सा जा रहा हूं

इस भटकती दुनियां में

नही मिल रही मंजिल

इस स्वार्थी दुनियां में

स्वाभिमान की लड़ाई में

दुनिया की ठोकरें खा रहा हू

अहिंसा के पथ पर

चोट खां रहा हू

हिंसा की राह पर

बदनामी की भेट मिल रहीं

खुद बदल कर दुनियां बदल ने चला

खो बैठा हु ईमानदारी ,स्वाभिमान , न्याय, धर्म

जी रहा हू भ्रष्टाचार , बेइमान ,अन्याय, अधर्म, की जिंदगी

मैं मैं।

:-दक्षल कुमार व्यास

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Dakshal Kumar Vyas

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ह्रदय ज्वाला रूप शब्दों के संग्रह में स्वागत है

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Dakshal Kumar Vyas

कवि कम क्रांतिकारी दक्षल कुमार व्यास सर्वप्रथम राष्ट्र की भावना लिए कर्म पथ पर अग्रसर है और इन की किताब समाज और मैं भी प्रकाशित हुई है।